अनुसूचित जाति को लोकसभा सीटों में पहली बार आरक्षण तीसरी लोकसभा के लिए 1962 में हुए चुनाव में दिया गया। तब 494 सदस्यीय लोकसभा में इस वर्ग के लिए अनसूचित जाति के लिए 79 सीटें आरक्षित की गर्ई थी और तब कांग्रेस ने 62 सीटें जीतकर रिकार्ड बनाया था। तब से अब तक इस वर्ग की आरक्षित सीटों में बीच-बीच में घट-बढ़ होते हुए इस समय भी उसी 79 पर स्थिर है।
1996 में राज्य की 18 आरक्षित सीटों में से बसपा को दो , सपा को दो और अकेले भाजपा ने 14 सीटों पर विजय मिली थी ।
1998 के चुनाव में भाजपा के खाते में 11 सीटें आईं, जबकिबसपा को सिर्फ़ दो सीटें ही मिली।
1999 में भी भाजपा सात सीटें जीतकर बढ़त पर रही। जबकि सपा व बसपा को पांच-पांच सीटें मिली।
2004 के पिछले चुनाव में भाजपा की प्रदेश में करारी हार हुई फिर भी उसने अपनी जीती दस सीटों में तीन इस वर्ग के लिए आरक्षित जीतीं। सबसे ज्यादा सात सपा को व बसपा को पांच सीटें ही मिली।
उत्तर प्रदेश में पार्टी ने तीन आरक्षित सीटों, खुर्जा, हाथरस व जालौन (1999 छोड़कर) पर लगातार कब्जा बनाए रखा है।
1996 में पहली बार सत्ता का स्वाद चखा तो उसमें सबसे अहम भूमिका अनुसूचित वर्ग के लिए आरक्षित सीटों की ही थी। इस चुनाव में उसने इन सीटों के जीत के मंत्र को खूब सिद्ध किया। पिछली बार की हार में भी उसका यह अनुसूचित सीटों पर सफलता वाला हथियार पूरी तरह बेकार नहीं गया। हालांकि, दूसरे दल भाजपा के इस फार्मूले की काट में जुटे हैं।
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