2/08/2009

जय भीम धार्मिक नही आस्था का शब्द है: शांत प्रकाश

जय भीम शब्द धार्मिक नहीं है बल्कि यह शब्द इस देश के दलितों, शोषितों, पीड़ितों व उपेक्षित वर्गो की आस्था का और देश के संविधान पर विश्वास एवं धर्मनिरपेक्षता के गौरव का प्रतीक है।
देश में शोषण, उपेक्षा और सामाजिक गैर बराबरी के शिकार रहे करोड़ों दबे, कुचले, मजलूम लोग जो कि खासतौर से दलित, पिछड़े सहित सर्वसमाज के गरीब वर्गो से आते हैं वे अपने मसीहा बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के सम्मान में जय भीम का अभिवादन करते हैं।
दलित समाज में डा. अंबेडकर का जन्म हुआ, अत: उन्होंने इस दर्द को स्वयं भी महसूस किया। इन सभी विपरीत परिस्थितियों के खिलाफ संघर्ष करते हुए बाबा साहब ने इन वर्गो को जागरूक व संगठित करने का बेहद मुश्किल काम शुरू किया।
इसलिए इनको मानने वाले लोग इनकी जयकार करते हैं और बाबा साहब के आदर सम्मान में अपने समाज में एक-दूसरे को जय भीम कहकर उनके कार्यो के प्रति हमेशा नतमस्तक रहते हैं। इसलिए जय भीम अभिवादन का किसी भी प्रकार के धार्मिक परिपेक्ष्य से कोई लेना देना नहीं है।
प्रमुख इस्लामिक संस्था दारुल उलमा ने दिए अपने फतवे में बसपा कार्यकर्ताओं द्वारा उच्चारित किए जाने वाले जय भीम नारे को गैर इस्लामी करार दिया है।

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