1/20/2009

भारत के सेंसर बोर्ड की चेतना और आत्मा मर चुकी है



"slumdog Millionaire" नाम से दुःख

आज के दोंर मैं गरीब समाज अलग-अलग नाम से जाना जाता है. किसलिए सिर्फ़ गरीब का रोज

नया नामकरण होता है. कभी गिरिजन, हरिजन, चमार, भंगी, दलित, उपेक्छित समाज,

वंचित समाज, अछूत. कब तक इज्जत उतरवा कर आमिर का मनोरंजन करता रहेगा यह

समाज आज राज्नेतिकों की पहली पसंद है यह समाज, फिल्मकारों के लिए है यह एक आकर्षक

मुधा. कियोंकि ऐसे नाम रखने से कोई इनके ख़िलाफ़ कोर्ट जाएगा और इनको आराम से

पोपुलारिटी मिल जायेगी ऐसी गन्दी सोच को बढावा हमारा सेंसर बोर्ड भी दे रहा है. इस

फ़िल्म को अनुमति देने का मतलब है की इस बोर्ड की आत्मा मर चुकी है और इस बोर्ड मैं

कोई भी इस समाज की चिंता करने वाला नही है. और इस सब के पीछे कारण है सरकार की

लापरवाही और अनदेखी. ऐसी दशा मैं एक बार फ़िर भगवन ही भला करे जो कभी नही

करता पर उम्मीद है.

जय भीम, जय भारत, भारत माता की जय.

शांत प्रकाश(जाटव)
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इंदिरा पुरम,
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भारत
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